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लेखनी कहानी -09-Mar-2022 प्रतिलिपि हवेली में होली का हुरंगा

कल मैं थोड़ा व्यस्त था । रात को "द कश्मीर फाइल्स" मूवी देखने चला गया श्रीमती जी और बेटे के साथ । इसलिए लिख  नहीं पाया । अब कोशिश कर रहा हूँ । एक बात जरूर कहूंगा कि आप सब लोग इस फिल्म को अवश्य देखिए । पूरे परिवार के साथ । जिससे आप सबको वह सच पता चले जिसे दफन कर दिया गया था सत्ता, मीडिया और सेकुलर्स ने । मगर सत्य तो पहाड़ तोड़कर भी बाहर आ जाता है । मगर कुछ लोग अब भी इस "नंगी सच्चाई" को नकारने में लगे हैं । इसलिए आप इस फिल्म को इसलिए देखिये जिससे आपको पता चले कि जिन्हें हम भाई भाई समझ रहे थे वे कितने कसाई हैं । नंगा सच दिखाया गया है इस फिल्म में । मेरे कहने से ही सही, देखना अवश्य । 


आज "फूल होली" का कार्यक्रम है तो सबके चेहरे फूलों की तरह खिल रहे थे । आज महिला मंडली ने अपना श्रंगार भी फूलों से ही किया है । 

फूल के हार फूल के गजरे 
होंठ फूलों से गाल फूलों से 

फूलों की डाली की तरह लचकती मटकती हुई प्रिया जी आ रही थीं । गुलाब के फूलों से श्रंगार किया था उन्होंने । उधर से रितु जी भी आ गयीं । अरे ये क्या ? रितु मैम तो मोगरे का बूके लग रही थीं । नख शिख तक श्रंगार मोगरे के फूलों से किया हुआ था । पूरे हॉल में मोगरे की सुगंध भर गई थी । कमर पर मोगरे के फूलों से बनी कमरपेटी की छटा अद्भुत थी । 

अनन्या जी ने हमें उलाहना देते हुए कहा "ये क्या सर , आपने प्रिया जी को गुलाब और रितु जी को मोगरे से सजा दिया है । हमको क्या गोभी के फूल से सजाएंगे" ? 

कभी कभी बिन मांगे ही आईडिया मिल जाते हैं । जैसे अनन्या जी ने ऐंवैंयी दे दिया था । मगर हमारे दिमाग में अनन्या जी के लिए कोई दूसरा प्लान है । मगर इसकी जानकारी उन्हें नहीं है इसलिए थोड़ी दुखी सी लग रही थीं । 

हमने कहा "चिंता मत करो । आप को भी सजा देंगे । आपको तो राधा और श्री को कृष्ण बनाने का विचार है । कहो कैसा लग रहा है" ? 
"सर, आप इतना सम्मान देते हैं इसलिए आपके गुणगान करते रहते हैं । पर सच में ऐसा होगा क्या" ? अनन्या जी श्री के बिना अपना अस्तित्व मानने को तैयार नहीं थीं ।

हमने कहा "वो देखो, वो सामने से श्री आ रहे हैं कृष्ण कन्हैया बनकर । अब तो विश्वास हुआ" ? 

सामने से श्री को देखकर अनन्या जी को विश्वास ही नहीं हुआ । श्री कृष्ण के रूप में बहुत जंच रहे थे । माथे पर मोर मुकुट बालों में भांति भांति के फूल खोंसे गये थे । ललाट पर चंदन का लेप । बड़ी बड़ी आंखें । तीखे नैन नक्श । वैसे तो श्री गोरे चिट्टे हैं मगर यहां श्रीकृष्ण बने हैं तो उन्हें श्याम रंग से रंग दिया था । गले में गुलाब, ट्यूलिप के फूलों से सजी हुई माला लटक रही थी । कलाइयों पर भी फूल से बने कंगन और भुजाओं में बाजूबंद थे । हलके पीले रंग के वस्त्रों में श्री बहुत सुंदर लग रहे थे । 

उनका यह रूप देखकर अनन्या जी मंत्रमुग्ध हो गई । "हे शिव , श्री को किसी की नजर ना लग जाये । रक्षा करना प्रभु" । मन ही मन वो अपने आराध्य शिवजी से प्रार्थना कर रही थीं । 

कन्हैया को लेकर जितनी यशोदा मैया चिंतित रहती थीं उसी तरह श्री को लेकर भी हेमलता सरोजिनी मैम चिंतित रहती हैं । वैसे तो श्री का हेमलता जी से कोई नाता नहीं है लेकिन अनन्या जी के कारण उनका नाता श्री से जुड़ गया है । श्री उनके लाडले बन गए । हमेशा "म्हारो छोरो, म्हारो बेटो" की रट लगाये रहती हैं आई । अब जब श्री की मनभावन सूरत देखी तो वे झट से पूजा की थाली ले आईं और श्री के माथे पर काला टीका लगा दिया । फिर वे श्रीकृष्ण की आरती कर बलैंया लेने लगीं । उनके आराध्य "श्रीकृष्ण" आज उनके सामने इस तरह खड़े होंगे यह कल्पना कभी की ही नहीं उन्होंने । 

श्री आई के चरण स्पर्श के लिये झुकना चाह रहे थे लेकिन आई ने उन्हें रोक दिया । कहने लगीं "इस समय तुम मेरे बेटे श्री नहीं हो, बल्कि मेरे आराध्य श्रीकृष्ण हो । वो श्रीकृष्ण जो संपूर्ण विश्व के अधिष्ठाता हैं । वो श्रीकृष्ण जो पूरे जगत के पालक हैं । वो श्रीकृष्ण जो दुष्टों के संहारक हैं । वो श्रीकृष्ण जो प्रेम के अवतार हैं, शांति के दूत हैं । वो श्रीकृष्ण मेरे जैसी बहुत सारी.हेमलताओं के आराध्य हैं । वो श्रीकृष्ण झुकते नहीं हैं बल्कि उनके चरणों में सकल जगत झुकता है । आज मैं धन्य हो गई हूं जो मेरे आराध्य मेरे सम्मुख खड़े हैं । मुझ पर कृपा करो प्रभु । मुझे अपनी शरण में ले लो प्रभु" । ऐसा कहकर आई श्रीकृष्ण के चरणों में लेट गईं । 

बड़ा अद्भुत नजारा था । एक मां अपने बेटे के चरणों में लेटी हुईं थीं । एक भक्त अपने आराध्य की पूजा कर रही थीं । ये क्या माजरा है अनन्या जी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था । उनकी इस दशा को देखकर रीता गुप्ता मैम उन्हें समझाने लगीं । 

"रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने इस स्थति के बारे में बताया है । 
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ।

यह केवल भावना का प्रश्न है और कुछ नहीं । मंदिर में मूर्ति पत्थर की होती है । कुछ लोग उसे भगवान मानते हैं तो कुछ लोग उसे केवल एक पत्थर मानते हैं । इसी तरह इंसान भी है । जब कोई इंसान जब तक अजनबी बना रहता है , तब तक वह एक इंसान ही बना रहता है । लेकिन जब हम उससे अपना रिश्ता मां, बाप या किसी और रूप में जोड़ लेते हैं तब वह हमारे लिये पूजनीय या स्नेही बन जाता है । यह केवल भावनाओं का खेल है और कुछ नहीं । और भगवान तो केवल भावनाओं के ही भूखे हैं । जिसकी जितनी ज्यादा भावनाएं उसकी उतनी ज्यादा भक्ति । 
मेरा मुझमें कुछ नहीं सब कुछ है प्रभु तेरा 
तू ही धड़के हर दिल में हर घर में तेरा बसेरा 

जिसने इस सत्य को जान लिया। प्रभु को अपना मान लिया । समझो उसने अपना जीवन संवार लिया । सब कुछ प्रभु के हवाले कर दो । करने वाले भी वही हैं । हम तो निमित्त मात्र हैं । सफलता भी उसी की और असफलता भी उसी की । यही भाव "भक्ति" कहलाता है और मोक्ष के अनेक मार्ग में एक मार्ग यह भी है । इसमें "हलदी लगे ना फिटकरी , और रंग चोखा आ जाता है" । 

अनन्या जी रीता गुप्ता मैम के ज्ञान की गहराई जानकर दंग रह गई । उन्हें आज पता चला कि कितने ज्ञानी लोग यहां विराजमान हैं । अब तक इस ग्रुप का मस्ती रूप नजर आ रहा था आज "भक्ति" रूप नजर आ रहा है । सच में , मानव के भी कितने रूप होते हैं । 

अनन्या जी अभी कुछ और "शास्त्रार्थ" करती कि हेमलता मैम ने कड़क कर कहा "मेरे प्रभु कब के आये हुए हैं ? तुम अभी तक राधा नहीं बनी हो । जाओ , फटाफट तैयार होकर आओ । और ललिता, विशाखा, चंद्रकला , तुम सब लोग "राधा" को तैयार कर लेकर आओ" । 

हेमलता मैम ज्योति जी को ललिता, शिखा जी को विशाखा और शबाना जी को चंद्रकला सखी समझ रही थीं । इनके साथ साथ अपनेश जी, सुनंदा जी भी चल दीं राधा को तैयार करने के लिए । 

पलक झपकते ही अनन्या जी "राधा" के गेट अप में आ गई । घने काले लंबे बाल जो घुटनों से भी नीचे तक आ रहे थे । उनमें मोगरा, चंपा और दूसरे फूलों की वेणी गुंधी हुई थी। बालों को करीने से संवारा गया था जिनमें गजरा बांध कर सजाया था । फूल का टीका, फूलों की झालर माथे पर , फूलों के कुंडल, फूल की नथनिया , फूलों के हार , कंगन,  बाजूबंद, मेखला और फूलों की पाजेब । सब कुछ फूलों का । "फूल" पर फूल कैसे लग रहे थे जैसे चंदा पे चकोरी । जैसे सोने पे सुहागा । 

इतने में सब लोग भी सजधज कर आ गये । विनय जी और दूसरे सखा सब ग्वाल बाल बन गए और सब महिलाएं गोपियाँ बन गई । एक मंच बनाया गया जहां श्रीकृष्ण और राधा जी को झूले में बैठाया गया । पुष्प लता मैम, शीला मैम, अलका मैम उन्हें झुला रही थीं । 

उधर, हेमलता मैम ने फूलों की डोलियां मंगवा ली थी । सैकड़ों क्विंटल फूलों की पंखुड़ियां अलग अलग डलियों में रखी हुई थी। गुलाब के फूल, गेंदे के फूल कमल के फूल आदि आदि । आजकल तो फूल भी राजनैतिक हो गए हैं । कमल के फूल को किसी एक दल का मान लिया है तो दूसरे फूल को दूसरे दल का । दीवाली के दिन विरोधी खेमे वाले लोगों की हालत बहुत बुरी हो जाती है । लक्ष्मी जी को कमल का फूल अति प्रिय है । वे निकली भी तो कमल से ही हैं । तभी तो उनका नाम कमला है । मगर बेचारे विरोधी ! पूजा की थाली में कमल का फूल रख भी नहीं सकते । क्या पता राजमाता को पता चल जाये और कब उसका पत्ता साफ हो जाए ? इसी चक्कर में बेचारे पूजा भी नहीं कर पाते हैं । इससे बड़ी तानाशाही कुछ और हो सकती है क्या वर्तमान नेतृत्व की ? इस कमल के फूल ने अच्छे अच्छे "खानदानों" को तबाह कर दिया है । सत्यानाशी कहीं का" । 

फूल होली आरंभ हो गई है । मस्तानी मंडली भजन गा रही है । शीला शर्मा मैम का गला बहुत मीठा है । मिसरी सी मीठी आवाज में उन्होंने भजन सुनाना शुरू किया और सभी मस्तानी उनका साथ देने लगीं । 

नैना नीचा कर ले श्याम से मिलावैगी कांई नैना नीचा कर ले 
ओ, नैना नीचा कर ले श्याम से मिलावैगी कांई, नैणा नीचा कर ले 

ओ गोरा गोरा हाथां में रच रही मेंहदी 
अरे हाय राधे, झालो देर बुलावैली कांई 
नैणा नीचा कर ले 

ओ तीखा तीखा नैनों में झीणो झीणो सुरमो 
अरे हाय ओ राधे, नैणा सूं नैणा मिलावैली कांई 
नैणा नीचा कर ले 

ओ गोरा गोरा हाथां में हरी हरी चूड़ियां 
अरे हाय ओ राधे, बहियां सूं बहियां मिलावैली कांई 
नैणा नीचा कर ले 

गोरा गोरा पगल्या में बज रही पायल 
अरे हाय ओ राधे, थोड़ो सो नाच दिखावैली कांई 
नैणा नीचा कर ले 

अरे चंद्रसखि भज बाल कृष्ण छबि 
अरे हाय ओ राधे, हरष हरष गुण गावैली कांई 
नैणा नीचा कर लै 

दीवानी और तूफानी टीम फूलों की वर्षा कर रही थी । पूरा वातावरण कृष्ण राधा मय हो रहा था जहां फूलों और भक्ति की खुशबू एकाकार हो रही थी । 

दीवानी मंडली की बारी आ गई थी । मोर्चा सुनंदा जी, श्वेता विजय जी, सुषमा जी, शिल्पा जी ने संभाला । गाने लगे 

होरी खेल रहे नंदलाल मथुरा की कुंज गलिन में 
मथुरा की कुंज गलिन में, गोकल की कुंज गलिन में 
होरी खेल रहे .... 

वो ग्वाल बाल संग आते गलियों में धूम मचाते 
ऐसे नटखट दीनदयाल मथुरा की कुंज गलिन में
होरी खेल रहे .. 

हम संग सखियों के जावैं मारग में ठाड़े पावें 
हमें रहता यही मलाल मथुरा की कुंज गलिन में 
होरी खेल रहे .. 

वो तो नये कलश मंगवाये और उनमें जल भरवाये 
अरे रंग घोल रहे नंदलाल मथुरा की कुंज गलिन में 
होरी खेल रहे ...

मेरे भर पिचकारी मारी चूंदर की आब बिगारी 
अरी मेरे मुंह पर मल्यो गुलाल मथुरा की कुंज गलिन में 
होरी खेल रहे नंदलाल ... 

कोई ढोल नगाड़े बजावै कोई हर्ष हर्ष होरी गावै 
"हरि" नाचै दे दे ताल मथुरा की कुंज गलिन में 
होरी खेल रहे नंदलाल ... 

सब लोग मस्ती में मस्त होकर नाचने लगे । श्रीकृष्ण और राधा बने श्री और अनन्या मंच पर रास रचा रहता थे । ज्योति, शिखा आदि अन्य मैम अनन्या जी की सखियां बनी हुई उनकी ताल से ताल मिला रही थीं । सब गोपियाँ श्रीकृष्ण और राधा जू पर फूलों की बौछार कर रही थीं । डलिया से फूल भर भर कर श्रीकृष्ण और राधा पर मार रही थीं । अचानक शिखा मैम जो सबसे छोटी हैं , ने डलिया भर गुलाब के फूलों की पंखुड़ियां ज्योति मैम के ऊपर डाल दी । फिर तो "जय - वीरू" की जोड़ी ने मोर्चा संभाल लिया । गजब का तालमेल था दोनों में । जय वीरू एक तरफ और बाकी तूफानी लड़कियां एक तरफ । फूलों की पंखुड़ियों से होली खेली जा रही थी । पता ही नहीं चल रहा था कि कौन किसे मार रहा है । 

कार्यक्रम आगे बढ़ाते हुए हमने कहा "मस्ती करने के मौके मिलते रहेंगे । उमंगों के फूल दिल में खिलते रहेंगे । इसी तरह साथ मिलेगा गर आप सबका , देखना, एक दिन हम सब आसमां में छा के रहेंगे । अभी तो तूफानी टीम का तूफान देखना बाकी है । तो अब दिल थाम कर बैठिये , अब तूफानी टीम तूफान मचाने आ रही है " । 

हमारी इस बात पर सब लोग अचकचाए । कहने लगे "एक बात बताइये सर, हम दिल थामकर कैसे बैठें " ? मधु जी बोली । 
हमने अपना हाथ उठाया, दिल के पास ले गये । फिर उस हाथ से दिल थामा और कहा " ऐसे" । 
इस पर अपनेश जी ने कहा "आगर किसी के पास दिल ही नहीं हो तो" ? 

बड़ा अटपटा सा प्रश्न था यह । "दिल होगा क्यों नहीं , भला ? आखिर जायेगा कहां ? उसकी इतनी हिम्मत जो बिना बताये कहीं चला जाये" । हमने धीरे से कहा 

"सर, जिस दिन से 'उनको' देखा है दिल भी उन्हीं के पास है । मतलब पतिदेव के पास है । अब आप ही बताइए , हम क्या करें " ? 

हम असमंजस में पड़ गए । ऐसा भी होता है क्या ? लेकिन जब इतने लोग कह रहे हैं तो सही ही कह रहे होंगे । मगर संतुष्टि ऐसी लाइलाज़ बीमारी है कि कभी ठीक होती ही नहीं है । हमने परवानों से पूछा "तुम्हारे पास भी तुम्हारा दिल है कि नहीं" ,

वो सब हंसने लगे । सत्यम सिन्हा कहने लगे " हमारा दिल तो हमारे ही पास है । दिनों दिन यह विशाल होता जा रहा है । इस दिल में रहने वालों की संख्या भी बढती जा रही है । और यह रुक नहीं रही है" । 

हमें लगा कि स्त्री और पुरुष में बस यही अंतर है । उनके लिये "तुम्ही मेरे मंदिर, तुम्ही मेरी पूजा , तुम्ही देवता हो" और इनके लिये "मेरा दिल एक कमरा है जिसमें हर कोई रहता है" ।.इसीलिए तो नारी की पूजा की जाती है । 

तूफानी मंडली अपने साज बाज ले आई । इतने में श्री दौड़कर हेमलता मैम के पास गये और उन्हें हाथ पकड़कर अपने साथ मंच पर लिवा ले आये । फिर अनन्या जी की ओर इशारा करके गाने लगे 

राधिका गोरी से , बिरज की छोरी से 
मैया करा दै मेरो ब्याह 
देख कुछ तो बिचार के । 
राधिका गोरी से .. 

हेमलता मैम भी कम थोड़ी हैं । आ गयीं अपने अवतार में और शुरू हो गई 

उमर तेरी छोटी है , नीयत तेरी खोटी है 
कैसे करा दूं तेरो ब्याह 

राधिका गोरी से ... 

फिर श्रीकृष्ण बने श्री मैया यशोदा यानी हेमलता जी को मनाने लगे 
चंदन की चौकी पे मैया तुझको बैठाऊं 
अपनी राधिका से मैं चरण तेरे दबवाऊं 
भोजन मैं बनवाऊंगा छप्पन प्रकार के
राधिका ... 

छोटी सी दुल्हनिया जब अंगना में डोलैगी 
तेरे सामने मैया वो घूंघट ना खोलैगी 
दाऊ से जा कहो जा कहो बैठेंगे द्वार पे 
राधिका गोरी से .. 

जब मैया नहीं मानी तो श्री धमकी पर उतर आये 

जो ना ब्याह कराये तेरी गैया नाही चराऊं 
आज के बाद मेरी मैया तेरी देहरी पे ना आऊं 
आयेगा रे मजा रे मजा अब मेरे ब्याह का 
राधिका गोरी से .. 

राधा बनी अनन्या जी मंद मंद मुस्काने लगीं । उनके मन की बात श्री ने जान ली और मैया से कह भी दी । अब मैया क्या करती है, देखते हैं । 

परवाने कूद कर आ गए । सब लोग मोर बनकर आये थे । श्री ने भी मोर रूप धारण कर लिया । मयूर नृत्य शुरू हो गया । 

एक दिन बोली राधा प्यारी 
दो दिन से नहीं मिले मुरारी 
बिना श्याम सुंदर दर्शन के प्यासी अंखिया 
अरे आयो रसिया, मोर बन आयो रसिया 
बरसाने की मोर कुटी पे मोर बन आयो रसिया 

मोरा बन गए मदन मुरारी 
ऐसो नृत्य कियो गिरधारी 
या छबि ऊपर मोहित है गईं ब्रज की सखियां 
आयो रसिया मोर .... 
कान्हा नाचै छम छम छननन 
पायल बाजै रुन झुन झुननन 
"हरि" संग प्रतिलिपि के नाचै सखा और सखियां 

और.इस प्रकार सबने जी भरकर फूल होली खेली । 
बोलो राधा कृष्ण की जय 

हरिशंकर गोयल "हरि"
17.3.22 





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